अफीम की खेती मादक पदार्थ (Narcotics) के लिए की जाती है इसके पौधा एक मीटर ऊँचा, तना हरा, पत्ता आयताकार तथा फूल सफ़ेद, बैंगनी या रक्तवर्ण, सुंदर कटोरीनुमा एवं चौड़े व्यास वाले होते है पोस्त भूमध्यसागर प्रदेश का देशज माना जाता है. यहाँ से इसका प्रचार सब ओर हुआ।
इसकी खेती भारत, चीन, एशिया माइनर, तुर्की आदि देशों में मुख्यत होती है। भारत में पोस्ते की फसल उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं राजस्थान में उगाई जाती है. पोस्त की खेती एवं व्यापार करने के लिये सरकार के आबकारी विभाग से अनुमति लेना आवश्यक है, पोस्ते के पौधे से अहिफेन यानि अफीम निकलती है, जो नशीली होती है।
फूल एवं फल
इसके पौधों पर फल फूल झड़ने के तुरंत बाद आने लगते है, जिसका आकार एक इंच व्यास वाला देखने में अनार की तरह होता है इसके फल को डोडा कहते है, तो स्वयं ही फट जाता है, तथा फल के छिलको को पोश्त कहा जाता है। इन डोडो के अंदर सफ़ेद रंग के गोल आकार वाले सूक्ष्म, मधुर दानेदार बीज पाए जाते है।
इन्हे आमतौर पर खसखस भी कहते है नमी होने पर अफीम मुलायम होने लगती है इसका अंदरूनी भाग गहरा बादामी और चमकीला है, जो बहार से काला रंग लिए गहरा भूरा होता है इसकी गंध तीव्र गति वाली होती है, जिसका स्वाद तिक्त होता है।
इसे भी पढे – मिट्टी के प्रकार की जानकारी, और भारत की कृषि मे मिट्टी का क्या योगदान है
बुआई का समय
रबी में – बुआई का समय – 20 अक्टूबर से 10 नवंबर के बीच
फसल अवधि – 95 से 130 दिन
तापमान , मिट्टी की तैयारी व खेत की जुताई
अफीम की खेती के लिए अच्छे जल निकास की दोमट मिटटी या चिकनी दोमट मिटटी अच्छी मानी जाती है । इस फसल के लिए मिटटी का पी एच मान 6 . 5 से 7 के बीच होना चाहिए । खेत की 3 से 4 जुताई करके 1 एकड़ खेत में 8 से 10 टन गोबर की खाद का इस्तेमाल करे । फसल को भूमिगत कीटो से बचाव के लिए बुवाई से पहले 1 एकड़ खेत में 1 लीटर Chlorpyrifos 20 % 20 किलोग्राम रेट में मिलाकर डाले । इसके बाद 1 जुताई करके खेत में पाटा लगाकर क्यारी बना दे ।
अफीम की खेती मे बीज उपचार
अफीम के बीज को बुवाई से पहले 4 ग्राम Mancozeb 75 % WP को 1 किलोग्राम बीज के हिसाब से मिलाकर उपचारित करे ।
अफीम की खेती की उन्नत किस्में ( Varieties )
- अवधि- 95 से 130 दिन
- गुण- जवाहर अफीम 16
- जवाहर अफीम 539
- जवाहर अफीम 540
- रमजातक
- आई सी 42
- चेतक
बीज एवं बुआई का तरीका
अफीम की 1 एकड़ फसल तैयार करने के लिए 2 किलोग्राम बीज की जरुरत होती है, फसल बुवाई के समय लाइन से लाइन की दूरी 30 सेमी रखे और पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी रखे बीज लाइन में ही बोए।
इसे पढे – ऑर्गेनिक खाद बनाएं जो होगा यूरिया और DAP से कई गुना ताकतवर
उर्वरक व खाद प्रबंधन
बुवाई के समय – अफीम की फसल में खाद का इस्तेमाल मिटटी की जाँच के अनुसार करे । 1 एकड़ फसल के लिए 10 टन गोबर की खाद बुवाई से पहले प्रयोग करे । बुवाई के समय 20 किलोग्राम यूरिया , 30 किलोग्राम dap , 10 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल करे ।
बुवाई के 35 से 40 दिन बाद – अफीम की फसल 40 से 45 दिन की होने पर 1 एकड़ खेत में 20 किलोग्राम यूरिया खाद का इस्तेमाल करे ।
बुवाई के 50 से 55 दिन बाद – अफीम की फसल में फूल बनने से पहले 1 एकड़ खेत में 30 किलोग्राम यूरिया खाद का इस्तेमाल करे ।
अफीम की खेती मे सिंचाई
अफीम की फसल में बीज बुवाई के तुरंत बाद सिचाई करे । सिचाई के समय खेत में अधिक जल भराव न रखे । फसल में नमी के अनुसार 10 से 12 दिन पर सिचाई करते रहे ।
फसल की कटाई
अफीम के डोडे बड़े और कठोर होने पर फसल में चीरा लगाए, चीरा लगाने का समय सुबह 10 बजे से 4 बजे तक का समय अच्छा होता है। चीरा ज्यादा गहरा न लगाए अफीम लेते समय औजार को अच्छे से साफ़ कर ले अफीम सुबह 7 बजे से 9 बजे तक ही इकठ्ठा करे. फसल में चीरा ख़त्म होने के 10 से 15 दिन बाद डोडे अच्छे से सूखने पर खसखस की तुड़ाई करे ।
इसे पढे – किसानों के लिए सरकारी योजना, इन सरकारी योजनाओं का लाभ उठाएँ
अफीम की खेती मे लगन वाली बीमारी
पत्तो पर धब्बे
- पहचान– अफीम की फसल में इस रोग के कारण पत्तो पर पीले और सफ़ेद धब्बे बन जाते है पूरा पौधा सूखने लगता है ।
- बचाव– फसल चक्र अपनाएं ।
- रोग – प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करना चाहिए ।
- बीज को बुवाई से पहले उपचारित करे ।
- फसल में समय समय पर निगरानी करे ।
रासायनिक नियंत्रण – अफीम की फसल का इस रोग से बचाव करने के लिए 3 ग्राम कॉपर ऑक्सी क्लोराइड को 1 लीटर पानी के हिसाब से घोलकर स्प्रे करे।
आज का मध्यप्रदेश मंडी भाव देखे आज का राजस्थान मंडी भाव देखे आज का गुजरात मंडी भाव देखे आज का उत्तरप्रदेश मंडी भाव देखे आज का छत्तीसगढ़ मंडी भाव देखे आज का हरियाणा मंडी भाव देखे आज का महाराष्ट्र मंडी भाव देखे आज का पंजाब मंडी भाव देखेजड़ गलना
- पहचान – अफीम की फसल में इस रोग के कारण पत्ते पीले दिखाई देते है और धीरे धीरे फसल सूखने लग जाती है ।
- बचाव – फसल चक्र अपनाकर फसल लगाएं ।
- रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें ।
- बीज को उपचारित कर बुवाई करें ।
- रोगी पौधों को उखाड़कर खेत से अलग कर दें ।
रासायनिक नियंत्रण – अफीम की फसल में जड़ गलन रोग के लिए Copper Oxychloride 50 % WP 45 ग्राम या Hexaconazole 5 % + Captan 70 % WP 40 ग्राम 15 ली पानी के हिसाब से स्प्रे करें । जड़ गलन
पाले से बचाव के उपाय
फसल की सिंचाई की जाय यदि पाला पड़ने की संभावना हो या मानसून विभाग से पाला पड़ने की चेतावनी दी गई हो तो फसलों की हल्की सिंचाई करना चाहिए जिससे खेत का तापमान शून्य डिग्री से नीचे नहीं गिरेगा और फसलों को पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है। फसल को पाले से बचाने के लिए खेत के किनारे रात्रि के समय धुंआ करने से तापमान में वृद्धि होती है जिससे पाले से होने वाली हानि से बचा जा सकता है ।
अफीम की खेती रासायनिक उपचार
पाला पड़ने की संभावना होने पर फसलों पर गन्धक का अम्ल 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिए इसके लिए 1 लीटर गन्धक अम्ल को 1000 लीटर पानी में घोलकर 1 हेक्टेयर क्षेत्रफल में छिड़काव करना चाहिए। ध्यान रखा जाए कि पौधों पर घोल का छिड़काव अच्छी तरह किया जाय इस छिड़काव का असर 2 सप्ताह तक रहता है , यदि इस अवधि के बाद भी शीतलहर एवं पाले की संभावना बनी रहे तो गन्धक के अम्ल को 15-15 दिन के अन्तर से छिड़कना चाहिए।
इसे पढे – फार्मर रजिस्ट्री कार्ड या किसान कार्ड सम्पूर्ण जानकारी और प्रक्रिया
मृदु रोमिल आसिता
- पहचान – अफीम की फसल में इस रोग के कारण पत्ते पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते है।
- बचाव – खेत को खरपतवार से मुक्त रखे ।
- लगातार एक खेत में अफीम न उगाय ।
रासायनिक नियंत्रण – इस रोग का नियंत्रण करने के लिए 2 ग्राम मैनकोज़ब 75 % wp को 1 लीटर पानी के हिसाब से घोलकर छिड़काव करे ।