काजू की खेती से किसानों को आर्थिक लाभ

काजू का पौधा ग्राफ्टिंग विधि से तैयार होने पर वह लगाने के 2-3 साल बाद में ही फल देने लग जाता है, काजू का उत्पादन भारत के दक्षिणी क्षेत्रों में होता है, जैसे केरल, महाराष्ट्र, गोवा, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और पंजाब।

 भारत में काजू की खेती के लिए उच्च जलवायु और मृदा आवश्यक होती है, काजू की खेती भारत में लगभग 10.27 लाख हेक्टेयर भूमि पर होती है।

भारत में हर साल करीब 7.25 लाख मेट्रिक टन काजू उत्पादित होता है, काजू के दामों में उत्पादन और आयात-निर्यात के कारण तेजी देखी जा सकती है।

 काजू के दाम उसकी गुणवत्ता और विभिन्न उत्पादों के आधार पर निर्धारित किए जाते हैं, काजू के फलों में Tenin और CNSL नामक रसायनिक पदार्थ होते हैं, जो त्वचा पर इंफेक्शन का कारण बन सकते हैं।

काजू के पेड़ की राल को औद्योगिक उत्पादों में उपयोग किया जाता है, जैसे ब्रेक लाइनर और रंग-पेंट, काजू के कच्चे फलों का रंग हरा होता है, जबकि पके फलों का रंग लाल और नट/पूछ सफेद होता है।

 काजू का मंडी और थोक भाव बाजार की मांग, काजू की गुणवत्ता और क्वालिटी के आधार पर निर्धारित होता है, भारत में काजू का भाव 2023 में किलोग्राम प्रति रुपये के हिसाब से 60,000 से 1,40,000 रुपये प्रति क्विंटल है।

काजू के थोक भावों में दक्षिणी राज्यों में अच्छी क्वालिटी के लिए 25,000 से 80,000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव होते हैं, काजू टुकड़ी का व्यापार 450 से 630 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव में चल रहा है।

काजू का पौधा उच्च तापमान और कम वर्षा के क्षेत्रों में अच्छे रूप से फल देता है, काजू का पेड़ बारिश के दौरान पानी रखने की आवश्यकता नहीं होती है।

काजू की खेती में सवारी की जगह मशीनों का उपयोग किया जाता है, जो उत्पादन को आसान और तेज बनाता है, काजू की खेती में कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है ताकि पेड़ों को कीटों और रोगों से बचाया जा सके।

 काजू के फल को पूरी रिपेनिंग के बाद ही कटा जाता है, ताकि उसमें अधिक मात्रा में कार्बोहाइड्रेट हो सके, काजू का उपयोग खाद्य, मिठाई, नमकीन और विभिन्न व्यंजनों में किया जाता है, और यह एक पौष्टिक स्रोत के रूप में भी मान्यता प्राप्त है।

लाल भिंडी किसानों को बना रही लखपति, जानिए इसकी खेती का रहस्य

अगली स्टोरी