ड्रिप प्रणाली एक ऐसी विधि है, जिसमें फसल को पानी की मात्रा धीमी गति से बूंद बूंद करके फसलों की जड़ों तक पहुंच पाता है, ड्रिप एक गोलाकार पाइप होती है।
ड्रिप सिंचाई के प्रयोग से जल की अधिक खपत तथा उर्वरक के अनावश्यक बर्बादी को रोका जा सकता है।
पद्धति की शुरुआत सबसे पहले इजराइल देश में की गई थी उसके बाद अब वर्तमान समय में दुनिया के कई देशों में इस तकनीक का उपयोग किया जा रहा है।
ड्रिप प्रणाली के माध्यम से हम उर्वरकों को घोल के रूप में पौधों की जड़ों तक इसे पहुंचाया जाता है।
ड्रिप प्रणाली से की गई सिंचाई से फसल की पैदावार 150 प्रतिशत तक बढ़ जाती है, और पारंपरिक सिंचाई की तुलना मे 70% तक जल की बचत की जा सकती है ।
ड्रिप सिंचाई का सबसे अच्छा फायदा यह है, कि इसका इस्तेमाल कर लवणी रेतीली एवं पहाड़ी भूमि में भी सफलतापूर्वक खेती की जा सकती है ।
टमाटर, बैंगन, खीरा, लौकी, कद्दू, फूलगोभी, बन्दगोभी, भिण्डी, आलू, प्याज जैसी फसलों में भी ड्रिप विधि का इस्तेमाल कर सकते है
ड्रिप प्रणाली से सीमित जगह पर नमी होती है जिससे खरपतवार नियंत्रण सहायक होती है तथा खरपतवार कम उगते हैं।
वर्तमान समय में देश के लगभग 3.51 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में टपक सिंचाई प्रणाली का उपयोग किया जा रहा है, जो कि 1960 में केवल 40 हेक्टेयर था।
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