राम राम किसान भाइयों आज की इस पोस्ट मे हम अंगूर की खेती के बारे मे बात करेंगे, हमारे यहा पर सबसे अधिक अंगूर की खेती महाराष्ट्र राज्य (Grape Farming in Maharashtra) में की जाती है. क्योंकि इस राज्य मे अंगूर की खेती के लिए अनुकूल जमीन ओर मौसम दोनों है, अंगूर की खेती भारत में एक मुलायम और रेशेदार मीठे फल के रूप में की जाती है भारत में अंगूर की अच्छी पैदावार होती है, इसी कारण से लगभग 6 दशकों से भारत में अंगूर की खेती की जा रही है, अंगूर की खेती उचित तरीके से और बड़े पैमाने पर की जाए तो यह लंबे समय तक आय का अच्छा स्त्रोत बन सकता है.
बुआई का समय
अंगूर की खेती यदि आप रबी के सीजन में करने का सोच रहे है तो आप को अपनी फसल की बुआई का समय 1 नवंबर से 30 दिसंबर के बीच मे रखना चाहिए इन 2 माह मे फसल अच्छी से लग जाती है, और यदि आप बुआई खरीफ के समय पर करना चाहते है तो आप के लिए सबसे उत्तम समय 1 जुलाई से 31 अगस्त के बीच मे होता है इस टाइम हल्की बारिश के कारण फसल की ग्रोथ अच्छे से ओर जल्दी हो जाती है, और यदि आप जायद मे करना चाह रहे है तो उस मे सबसे अच्छा टाइम 1 जनवरी से 31 मार्च के बीच मे होता है.
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अंगूर की खेती मे मिट्टी की तैयारी
अंगूर की फसल के लिए उपजाऊ दोमट मिटटी अच्छी मानी जाती है इस फसल के लिए मिटटी का पी एच मान 6.5 से 8.5 के बीच होना चाहिए इस लिए पहले मिट्टी का PH मान चेक कर ले, फसल बुवाई से 20 दिन पहले 1 एकड़ खेत में 4-5 टन सड़ी हुए गोबर की खाद में 2.5 किलोग्राम ट्रिकोडेर्मा ( Tricoderma ) को मिलाकर खेत में डाल दे फिर खेत की 2 से 3 बार अच्छे से जुताई करके पट्टा फेर दे जिस से खेत बराबर हो जाए फिर इस मे बोने के लिए 4 से 6 गांठों वाली 25 से 45 सेंटीमीटर लम्बी कलम का इस्तेमाल करे.
अंगूर की उन्नत किस्में ( Best grape varieties India )
भारत के अंदर लगभग 12 से 14 इसे उन्नत किस्म है जिन के बारे मे आप को नीचे जानकारी दी गई है….
Black Sahebi
- इसके फल जामुनी रंग के और अच्छी गुणवत्ता वाले होते हैं
- इसके गुच्छे अच्छे बड़े और छिल्का पतला एवं मीठा गुद्दा होता है
- बीज नर्म होते हैं और इन्हें लंबे समय तक रखा जा सकता है
- इस फल की उपज कम होती है पर फल का आकार बड़ा होता
Black Prince
- इसके फल जामुनी रंग के गोल होते है जिस मे मोटा छिल्का एवं मीठा और नर्म गुद्दा होता है
- इसके गुच्छे मध्यम आकार के और साइज़ मे भी छोटे होते हैं
- यह जल्दी और अच्छी उपज देने वाली किस्म है
- यह किस्म खाने और जूस बनाने के लिए उपयुक्त है
Beauty Seedless
- यह किस्म 1968 में जारी की गई है यह दक्षिण पश्चिमी जिलों में उगाने पर अच्छे परिणाम देती है
- यह मध्यम आकार की शाखाओं का निर्माण करती है जो कि अच्छी तरह से भरी होती हैं
- इसके फल बीज रहित होते हैं जो कि मध्यम आकार के और नीले काले रंग के होते हैं
- फल में टी एस एस की मात्रा 16-18 प्रतिशत होती है
- फल जून के पहले सप्ताह में पक जाते हैं इसकी औसतन पैदावार 25 किलो प्रति बेल होती है
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अर्का सोमा
- इस किस्म की उपज क्षमता 15-18 टन तक प्रति एकड़ होती है
- छँटाई से फसल कटाई तक इसमें फल पकने में 155 से 160 दिनों का समय लगता है
- इसमें भारी गुच्छों में फल लगते है जिसका औसतन वजन 400 ग्राम तक होता है
- इसके फल हरे ,पीले, गोल, तथा अंडाकार होते और इस की बेरी का औसतन वजन 3.8 ग्राम होता है
अर्का कृष्णा
- इस किस्म के गुच्छे आकार में बड़े एवं काले होते हैं
- फल मध्य जून तक पककर तैयार हो जाते हैं
- फल बीज रहित होते हैं
- इस की औसतन पैदावार 33 टन प्रति हेक्टेयर के लगभग होती है
परलेट
- Parlet अधिक उपज वाली उन्नत किस्म है
- इस के फल मध्यम आकार के हल्के एवं सुगंधित होते हैं
- इस मे 16 से 18 प्रतिशत तक शर्करा की मात्रा पाई जाती है
- प्रति बेल औसतन पैदावार 25 किलोग्राम तक प्राप्त होती है
पजाब मैक्स पर्पल
- इस किस्म के फल मध्यम आकार के एवं पकने पर जामुनी रंग के हो जाते हैं
- इस के फल मे एंथोसाइएनिन की मात्रा अधिक पाई जाती है
- शाखाएं मध्यम आकार की एवं गीली होती हैं
- इस के फल बीज रहित होते हैं
- फल जूस बनाने के लिए उत्तम होते हैं
सुपीरियर सीडलेस
- इस किस्म के बीज आकार में बड़े एवं सुनहरे होते हैं
- गुच्छे मध्यम आकार से बड़े आकार के होते हैं
- फल में शर्करा की मात्रा 10 प्रतिसत तक पाई जाती है
- प्रत्येक पौधे की औसतन पैदावार 22 किलोग्राम तक प्राप्त होती है
FLAME SEEDLESS
- इस किस्म के फल बीज रहित और सख्त एवं कुरकुरे होते हैं
- शाखाएं मध्यम आकार की एवं फल हल्के जामुनी रंग के होते हैं
- इस मे 16 से 18 प्रतिशत तक शर्करा की मात्रा पाई जाती है
- फल 15 जून तक पककर तैयार हो जाते हैं
THOMPSON SEEDLESS
- यह देरी से पकने वाली पछेती उन्नत किस्म है
- इस मे फल मध्यम लंबे एवं पकने पर सुनहरे हरे होते हैं
- इस के गुच्छे बड़े आकार के होते हैं
- फल बीज रहित एवं स्वादिष्ट होते हैं
पूसा नवरंग
- यह जल्दी तैयार होने वाली अगेती उन्नत किस्म है
- गुच्छे में फल अत्यधिक मात्रा पाए जाते हैं
- फल बीज रहित एवं स्वादिष्ट होते है
- गुच्छे मध्यम आकार के होते है
Anab e shahi
- इस के फल सफेद रंग के अच्छी गुणवत्ता वाले होते हैं
- गुच्छे मध्यम से बड़े आकार के होते हैं
- फल का छिलका पतला होता है
- फल मीठे एवं स्वादिष्ट होते हैं
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अंगूर की खेती मे बीज उपचार
अंगूर की खेती मे उपचार के लिए बीज जनित फफूंदी रोगों के लिए कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर पौधे की जड़ों को रोपाई से पहले उपचारित करे, फिर निफिन विधि में 3×3 मीटर फासले का प्रयोग करें या आरबोर विधि में 5×3 मीटर फासले का प्रयोग करें और कटिंग की 1 मीटर की गहराई पर रोपाई करे इस के बाद सिंचाई करे अंगूर की खेती में लता के फलत के समय सिचाई की ज्यादा आवश्यकता होती है, फसल में नमी के अनुसार समय समय पर सिचाई करते रहे एवं फसल की कटाई अंगूर के फलों को पूरी तरह पकने पर ही करें.
उर्वरक व खाद प्रबंधन
खाद का इस्तेमाल मिटटी जाँच के अनुसार करे पौध रोपाई के समय 50 x 50 x 50 सेंटीमीटर आकार के गड्ढे में 20 किलोग्राम गोबर की खाद , 300 ग्राम नीम खली , 200 ग्राम एसएसपी और 100 ग्राम पोटाश का इस्तेमाल करे.
- एक साल के पौधे में 20 किलोग्राम गोबर की खाद, 200 ग्राम पोटाश, 500 ग्राम एसएसपी, 200 ग्राम यूरिया का इस्तेमाल करे
- दो साल के पौधे में 30 किलोग्राम गोबर की खाद, 300 ग्राम पोटाश, 800 ग्राम एसएसपी, 300 ग्राम पूरिया खाद का उपयोग करे
- 3 साल के पौधे में 40 किलोग्राम गोबर की खाद, 300 ग्राम पोटाश, 1000 ग्राम एसएसपी, 400 ग्राम यूरिया खाद का इस्तेमाल करे
- 4 साल के पौधे में 50 किलोग्राम गोबर की खाद 400 ग्राम पोटाश, 1200 ग्राम एसएसपी, 500 ग्राम यूरिया खाद का इस्तेमाल करे
- 5 साल के पौधे में 60 किलोग्राम गोबर की खाद, 500 ग्राम पोटाश, 1500 ग्राम एसएसपी, 500 ग्राम यूरिया खाद का इस्तेमाल करे
- फूल फल बनने की अवस्था में 10 ग्राम npk 00:00:50 को 1 लीटर पानी के हिसाब से घोलकर छिड़काव करे.
अंगूर की खेती मे प्रमुख कीट
अंगूर की खेती मे यह 2 किट एसे है जो फसल को पूरा खतम कर सकते है, तो इन के आने से पहेले ही इन से बचने का उपाय करना जरूरी है …..
अंगूर की खेती मे थ्रिप्स का प्रकोप
फसल में यह कीट पत्तियों के मुलायम भाग का रस चूसते है जिसके कारण पत्तियां कटोरे के आकार की बन जाती है फल फूल की अवस्था में इसका ज्यादा प्रकोप देखने को मिलता है जिसके कारण फूल झड़ने लग जाते हैं, इस से बचाब के लिए क्षतिग्रस्त पत्तियों, फलों और फूलों को इकट्ठा कर इन्हे नष्ट करें एवं फूल आने के बाद और फल लगने के दौरान तुरंत कीटनाशकों का छिड़काव आवश्यक है, इस मे आप लैंबडा सायलोथ्रिन 4.90 प्रतिसत, सीएस 10 मिली, 18 लीटर पानी मे घोलकर छिडकाव करें या फिर जैविक नियंत्रण मे नीम का तेल थ्रिप्स पर प्रभावशाली है खड़ी फसल में कीट नियंत्रण हेतु एजाडिरेक्टिन(नीम का तेल) 0.15 प्रतिशत ई.सी. की 1 लीटर मात्रा प्रति एकड की दर से 15 दिन के अन्तराल पर सायंकाल छिडकाव करना चाहिये.
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दीमक की रोकथाम
अंगूर की फसल दीमक कीट पोधो की जड़ो में दिखाई देता है इसके कारण पौधे के तने और जड़ सूखने लग जाते है इस से बचने के लिए खेत में कच्चे गोबर का प्रयोग नहीं करना चाहिए और फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए, इस से बचने के लिए आप रासायनिक नियंत्रण भी कर सकते है जिस मे दीमक की रोकथाम करने के लिए 20 मिली क्लोरपायरीफॉस 20 प्रतिसत ई.सी. (Chlorpyrifos 20 % EC) को 2 किलोग्राम रेत या बालू में मिलाकर पौधा की जड़ो में डाल दे इसके बाद हल्की सिंचाई कर दे, या फिर जैविक नियंत्रण मे आप नीम की खली 4 कुंटल प्रति एकड की दर से बुवाई से पूर्व खेत में मिलाने से दीमक के प्रकोप में कमी आती है.
अंगूर की खेती मे लगने वाली बीमारी
अंगूर मे मुख्य रूप से नीचे दी हुई बीमारी देखने को मिलती है …
अंगूर की खेती मे भ-भूतिया
इस रोग के कारण पत्तों के दोनों तरफ और फूलों के गुच्छों पर सफेद रंग के धब्बे बन जाते है और पत्ते मुरझाना शुरू हो जाते हैं फिर धीरे धीरे सूख जाते हैं, इस के लिए नवम्बर से फरवरी तक इसकी रोकथाम के लिए फफूँदनाशक का छिड़काव किया जाना चाहिए किसी भी एक फफूँदनाशक का दो बार से अधिक छिड़काव नहीं किया जाना चाहिए, या इस का रासायनिक नियंत्रण करे इस रोग की रोकथाम के लिए सल्फर 40 प्रतिसत, एससी 1200 मिली प्रति एकड, 400 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें या सल्फर 80 प्रतिसत, डब्ल्यूपी 1000 ग्राम प्रति एकड 400 लीटर पानी मे घोलकर छिडकाव करें.
श्यामवर्ण (Anthracnos)
अंगूर की खेती में इस रोग का प्रकोप बरसात के मौसम में ज्यादा होता है इस रोग के कारण शाखाओं की लताओं पर तथा पत्तियों पर काले रंग के धब्बे बन जाते है, इस के लिए सभी प्रभावित टहनियाँ या केनों को जिनमें धब्बे दिखाई देते हैं छंटाई करते हुए हटाया जाना चाहिए, छंटाई की गई टहनियाँ और पत्तियों को जला दिया जाना चाहिए या मिट्टी में गहरा गाड़ देना चाहिए और इस मे क्लोरोथालोनिल 75 प्रतिसत, डब्ल्यूपी 2 ग्राम प्रति लीटर पानी मे घोलकर छिडकाव करें.
कली,फूल व फल का झड़ना
फलों का झड़ना फल पकने के समय शुरू में होता है ऐसा पौधे की वृद्धि के तत्वों में कमी या जलवायु परिवर्तन के कारण होता है, इस से बचाब के लिए मिट्टी परीक्षण के अनुसार संतुलित मात्रा में उर्वरकों का उपयोग करें और मिट्टी में आवश्यक नमी बनाए रखें आवश्यकता अनुसार सिंचाई करते रहे इस के रासायनिक नियंत्रण में फल झड़ने से रोकने के लिए एल्फा नेप्थेलिन एसिटिक एसिड 4.5 प्रतिसत, एसएल 20 पीपीएम ( प्लानोफिक्स 3 मिली प्रति 15 लीटर पानी में घोलकर 10-15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें.
अंगूर की खेती मे पाले से बचाव
पाले से बचने के लिए फसल की सिंचाई कर दे, यदि पाला पड़ने की संभावना हो या मानसून विभाग से पाला पड़ने की चेतावनी दी गई हो तो फसलों की हल्की सिंचाई करना चाहिए जिससे खेत का तापमान शून्य डिग्री से नीचे नहीं गिरेगा और फसलों को पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है या फिर खेत के पास धुँआ करना चाहिए फसल को पाले से बचाने के लिए खेत के किनारे रात्रि के समय धुंआ करने से तापमान में वृद्धि होती है जिससे पाले से होने वाली हानि से बचा जा सकता है.
रासायनिक नियंत्रण
पाला पड़ने की संभावना होने पर फसलों पर गन्धक का अम्ल 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिए इसके लिए 1 लीटर गन्धक अम्ल को 1000 लीटर पानी में घोलकर 1 हेक्टेयर क्षेत्रफल में छिड़काव करना चाहिए पर ध्यान रखा जाए कि पौधों पर घोल का छिड़काव अच्छी तरह किया जाय इस छिड़काव का असर 2 सप्ताह तक रहता है , यदि इस अवधि के बाद भी शीतलहर एवं पाले की संभावना बनी रहे तो गन्धक के अम्ल को 15-15 दिन के अन्तर से छिड़कना चाहिए.
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